मंगलवार, दिसंबर 25, 2018

हम बना के रखें हैं ये् मन आखि़री

हम बना के रखें हैं ये मन आखिरी
है हमारा यही अब कथन आखिरी।।

उठ के जाने लगे जब जनाजा मिरा।
साथ में हो तिरंगा कफ़न आख़िरी।।
 
मौत महबूब बन कर गले मिल रही।
खूबसूरत है कितनी दुल्हन आखिरी।।

इतना ऊपर उठालो झुके ना कभी।
चूम आये तिरंगा गगन आखिरी।।

देके अपना लहू सींचते ही रहें।
सूख जाए न फिर से चमन आखिरी।।
    
      -अनूप कुमार अनुपम

 

शुक्रवार, दिसंबर 21, 2018

है जरुरी ये् तुमको, बताना सनम ।

है जरुरी ये तुमको बताना सनम ।
फिर से् आया ये मौसम सुहाना सनम।।
जश्न कैसे मनाऊँ नये साल का।
दर्द अपना है वर्षों पुराना सनम।।

दूर तुमसे हुए फिर दिवाली गयी।
रात कितनी अमावस की काली गयी।।
बैठ कर के यही हम लगे सोचने।
हम ने रो रो गुज़ारा ज़माना सनम।।

याद गलियों की् है ओ चमक चाँदनी
छेड़ कोयल जहां पे गयी रागनी।।
मिल रहे थे जहां हम सुबह शाम में।
आज तक है वहीं पे ठिकाना सनम।।

ज़िन्दगी को नयी इक कहानी मिली।
एक पल में कई जिंदगानी मिली।।
शौक से तुम हमें भूल जाओ मगर।
याद रखना दिलों का फ़साना सनम।।

तार से तार मन के है् जब से मिले।
गीत बनकर लबों पे है अरमां खिले।।
प्यार से इक दफा ही सुनो तो सही ।
कितना अनुपम है दिल का तराना सनम।।

      -अनूप कुमार अनुपम

रविवार, दिसंबर 16, 2018

बड़े अद्भुत बड़े दिलकश बड़े मयकश नज़ारे हैं।

बड़े अद्भुत बड़े दिलकश बड़े मयकश नज़ारे हैं।
ये उल्फत का समन्दर है यहां हरपल शरारे हैं।।

ख़ुदा का है करम हम पे वही मांझी हमारा है।
मुसलसल बह रही कश्ती यहाँ उसके सहारे हैं।।

हसीं महफ़िल सज़ायी है तुम्हारे प्यार में हमने।
फलक से आज धरती पर उतर आए सितारे हैं।।

बड़ी ही खूबसूरत है तुम्हारी ये हसीं आँखें।
निगाहे नाज़ में देखा क़यामत के इशारे हैं।।

बदलकर नाम रक्खा है मगर बदले नहीं है हम।
वही अनुपम तुम्हारे थे वही अनुपम तुम्हारे हैं।।
       -अनूप कुमार अनुपम

शुक्रवार, दिसंबर 07, 2018

ज़िन्दगी तबाह थी हजार देखते रहे।


ज़िन्दगी तबाह थी हजार देखते रहे।
कर सके न एक भी सुधार देखते रहे।।

दोस्तों से् दूर थे मिले नही क़रीब से।
दोस्ती मे् आ गयी दरार देखते रहे।।
        -अनूप कुमार अनुपम 

बुधवार, नवंबर 28, 2018

गीत सब तुम्हारे हैं

गा रहे हैै् हम मगर ये गीत सब तुम्हारे हैं।
साज साज कह रहे संगीत सब तुम्हारे हैं।।

नफरतों के् इस समर में प्यार की नसीहत है।
दिल से् तुम मिलो गले ये मीत सब तुम्हारे हैं।

अनूप कुमार अनुपम 

गुरुवार, नवंबर 22, 2018

उसी राह पे सब दिवाने चलें हैं।


उसी राह पे सब दिवाने चलें हैं।
घरौंदा जहां हम बनाने चलें हैं।।

जहां देखते हैं वहीं तुम खड़े हो।
नज़ारे ये् तुमको दिखाने चलें हैं।।

अधूरा रहेगा न कोई यहाँ पे।
ज़मीं से फ़लक को मिलाने चलें हैं।।

हमें इस जहाँ से मिटाने के् खातिर।
हमारे ही् दुश्मन पुराने चलें हैं।।

हमीं से चुराके हमारे ही् खंजर।
ओ् देखो हमीं पे चलाने चलें हैं।।

उन्हें भूलने में ज़माना लगेगा।
जिन्हें आज दिल से भुलाने चलें हैं।।

इनामे-मुहब्बत ये् हमको मिला है।
ग़ज़ल ये जो् हम गुनगुनाने चलें हैं।

-अनूप कुमार अनुपम
    
         
               


गुरुवार, नवंबर 01, 2018

हम साज हैं बेचैन

हम साज हैं बेचैन ओ संगीत लिए फिरा करते हैं।
आंखों में जलवा-ए-नुमाइश की रीत लिए फिरा करते हैं।।

पिरो कर लायें हैं उन्हें आजकल ग़ज़लों में।
सितार के झनकारो में जो मेरे गीत लिये फिरा करते हैं।।
                                 

-अनूप कुमार अनुपम

 

रविवार, सितंबर 23, 2018

तुझ से मिलने आया जब भी तुम होकर लौटा हूं मैं।

तुझ से मिलने आया जब भी तुम होकर लौटा हूं मैं।
लगता है तुझ में ही शाय़द गुम होकर लौटा हूं मैं।।

भटका जिस जंगल में बरसों वह यादों का उपवन था।
छूकर देखा चन्दन को कुमकुम होकर लौटा हूं मैं।।
                                      -अनूप कुमार अनुपम



रविवार, सितंबर 09, 2018

झुके सर बज्म में अपना कभी वह काम मत करना।

झुके सर बज्म में अपना कभी वह काम मत करना।
बहुत बदनाम कर डाला है् अब बदनाम मत करना।

निगाहें इश्क़ ने देखा यहां बेदाग कोई दर।
उछालें फिर अगर कीचड़ उन्हें इल्ज़ाम मत करना।।

दिये दिल के जलायें हैं यहां गम के अधेरों में।
सहर होने को् आयी है कहीं फिर शाम मत करना।।

बहारें कर रहीं कविता हवा के मन्द झोंकों से।
हवा गर घाव भर जाये इसे ईनाम मत करना।।

किताबे इश्क में मेरा सुकूं से नाम रहने दो।
जरा से शौक के खातिर हमें बेनाम मत करना।
                              -अनूप कुमार अनुपम

सोमवार, जुलाई 30, 2018

सनम ये हमारी वफ़ा देख लेना।

सनम ये हमारी वफ़ा देख लेना।
हुआ हूं मै तुम पर फना देख लेना।।

हरिक से छुपा के जो तुमको दिया है।
लहू से हैे् खत को लिखा देख लेना।।

उसी को यहां सब ग़ज़ल कह रहे हैं
जो हमने कभी है कहा देख लेना।।

हजारों ये रातें गुज़ारी जहां पे।
छुपा कर रखा है पता देख लेना।।

सितम तुम अभी तक किये जा रहे हो।
यही है तुम्हारी ख़ता देख लेना।।
             
      -अनूप कुमार अनुपम 

सोमवार, जुलाई 23, 2018

हर सितम को सहा है फ़ज़ल की तरह।

हर सितम को सहा है फ़ज़ल की तरह।
लिख रहा हूं उसी को ग़ज़ल की तरह।।

प्यार का फूल सांसों मे उसने गुथा।
खिल रहा हूं लबों पर कंवल की तरह।।

जो तराने सुनाये थे तुमने कभी।
याद आते वही आज़ कल की तरह।।

आ के् छायी कहां से ये गम की घटा।
बह रहा प्यार आंखों से जल की तरह।।

चल रहीं है सनम आज फिर आंधियां।
ढह रहे हम पुराने महल की तरह।।

                      -अनूप कुमार अनुपम


रविवार, जुलाई 22, 2018

दिल से कहता, उनकी बातें।

दिल से कहता, उनकी बातें।
दिल से सुनता, उनकी बातें।।

हर मौजूं में आ जाती हैं
मेरी कविता, उनकी बातें।।

पागल बनकर घूमे देखो
सुनकर जनता, उनकी बातें।

तन मन शीतल कर डाला है।
बहता दरिया, उनकी बातें।।

ग़ज़लों की दुनिया में जाकर।
मैं हूं लिखता, उनकी बातें।।

            -अनूप कुमार अनुपम 

शुक्रवार, जुलाई 20, 2018

कहां आ गए हैं नहीं कुछ खबर है।

कहां आ गए हैं नहीं कुछ खबर है
हुआ आज कैसा य मुझ पे असर है।।  
   
खनकती जहां थी ये पायल निगोड़ी।
वहीं पर बसा आज मन का नगर है।।

इशारों मे खंजर अदा कातिलाना।
निशाने पे हम हैं निशाना नजर है।।

हमेशा धड़कता है दिल सुन के् आहट।
जमीं पे कहीं तूं थिरकती अगर है।।
 
कहां जिंदगी कुछ सुनेगी हमारी।
चला हूं अकेला अकेली डगर है।।

                    -अनूप कुमार अनुपम

       

बुधवार, जुलाई 18, 2018

हवा खुशबुओं की जो् क़ातिल रही है

     
      ‌हवा खुशबुओं की जो् क़ातिल रही है।
      वही हर कली से गले मिल रही है।।

      गगन ने सितारे बिछाये जमीं पे।
      चमकती धरा ओस से खिल रही है।।

      बिरह बेदना गीत गाते पपीहे।
      ये् मीठी चुभन अब चुभन सिल रही है।।
     
      घटायें पिलाने लगीं आज मदिरा।
      नशे में कदम हैं जमीं हिल रही है।।

      नजर के नजारे चुरायें हैं उसने
      झुका के नजर अब चुरा दिल रही है    
                         -अनूप कुमार अनुपम
 
    
 
   

रविवार, जुलाई 01, 2018

न घर देखते हैं न दर देखते हैं।

न घर देखते हैं न दर देखते हैं।
शजर के परिन्दे शजर देखते हैं।।

कहीं हो ठिकाना कहीं भी बसर हो।
नजर में उसी की नजर देखते हैं।।

रखे आज सब ने नकाबों मे् खंजर।
हुआ चाक किसका जिगर देखते हैं।।

दिलों में समंदर छिपाए हुए हम।
जले आज कितने नगर देखते हैं।।

झुका जा रहा है हिमालय का् सर अब।
यहां अब किसे है खबर देखते हैं।।

   अनूप कुमार अनुपम 

मंगलवार, जून 26, 2018

कलम में हमारे ओ धार आ गई है

      कलम में हमारे ओ धार आ गई है।
      जो मां हंस पे हो सवार आ गई है।।

  ये दुनिया तो लगती थी वीरान मुझको।
    जो तुम आ गये तो बहार आ गई है।।

    वतन का कलेजा फटा जा रहा अब।
   सियासत की ऐसी फुहार आ गई है।।

    ये सावन यहां अब बरसता नहीं तो।
        कलेजे मे भू के दरार आ गई है।।

          यहीं थे यहीं हो यहीं क्या रहोगे।
        चलो साथ मेरे कतार आ गई है।।
   
        सियासी ये ढांचा बदलना पड़ेगा।
        वतन के सपूतों गुहार आ गई है।।
       
               -अनूप कुमार अनुपम 

शुक्रवार, जून 15, 2018

इश्क ने हमे ऐसे महल में लाके छोड़ा है।

इश्क ने हमें ऐसे महल में लाके छोड़ा है।।
         जहां मेरे सिवा और कोई नही है।।

टकराकर इन्ही दीवारों से मेरी धडकनें।
       फिर मुझ तक ही लौट आतीं हैं।।
         
        मैं खामोश हूं।लेकिन मुझे शक है।
      कोई तो है यहां जो गीत गा रहा है।।
       
                 इन्हीं गीत के सुर-तालों ने।    
     मेेरे जीवन के सुरतालों को तोड़कर।।
 
      कुछ नूपुर लगे हुये हैं एक धागे में।
            समेट लिया है जब कभी भी।।

             कहीं भी ओ खनक जातें हैं।
          तो हम टूट कर बिखर जातें हैं।

              -अनूप कुमार अनुपम 

मंगलवार, जून 12, 2018

जिसने मुझे हर खुशी दी है।

जिसने मुझे हर खुशी दी है।
जिसने मुझे ये जिंदगी दी है।
जो अपनी यादों से कभी दूर नहीं जाने देता।
उसे मेैं बेवफा कैसे कह दूं।

चला तो मेरे साथ कुछ दूर ही सही।
रुलाया ही मगर अपनाया तो सही।
जो हमें कभी तन्हा नहीं रहने दिया।
उसे मैं खता कैसे कह दूं।

चलो, मैं बहक गया था।
किसी अनजान रस्ते पे भटक गया था।
जो बेवक्त आके सताता रहता है मुझे।
उसको मैं सपना कैसे कह दूं।

ओ जख्म ही दे मैं मुस्कुराकर सह लूं।
ऐसी ताकत नहीं है उसके बगैर रह लूं।
क्या है उसकी मर्जी ये तो बस रब ही जाने।
मैं उसे अपना कैसे कह दूं।
                      -अनूप कुमार अनुपम







गुरुवार, जून 07, 2018

मैंने जो नगमें गायें हैं

मैंने जो नगमें गायें हैं
इन वादियों में इन घाटीओं में।
महफिलों में और तन्हाइयों में।
ओ सदायें गूंजती रहेंगी सदा।
जब तक ये दुनिया ये आलम रहेगा।

खनकती रहेगी तेरी पायल।
इन्हीं वादियों में।मैं उसी पायल की धुन पर
नए-नए कविताओं की नई-नई दुनिया रचता रहूंगा।
तुमने इन फिजाओं में जो खुशबू बिखराई है।

ओ इन हवाओं में महकती रहेंगीं सदा।
मैं उसी खुशबू में मतवाला होकर,
तुम से रूबरू होता रहूंगा।
मुझको ऐसा एहसास होगा।
तुम हो यही कही पर, इन्हीं नजारों में,
इन्हीं बहारों में,
छुप कर कहीं से
देख रही हो मुझे।
आवाज देती हो हाथ बढ़ाती हो।

मगर ये जाने कैसे मुझसे छूट जाते हैं।
मैं भटकता रह जाऊंगा इसी तरह।
गर तुमने मेरा हाथ ना थामा तो।
कहीं से आ जाओ इधर।

एक झलक दे जाओ,
मगर आओ तो सही।
मेरे हर शब्द तुझे ही तो बुलाते हैं।
हां यह शब्द मैंने ही रचे हैं।
मगर ये तेरे जलवों की ही तो करामात है।

तुम चली आई तो,
यही शब्द बसंत बन कर
फिर खिलखिलाने लगेंगें।
ना आयी तो पतझड़ में गिरे
नींम के सूखे फूलों की तरह सूख जाएंगे।
मैंने जो नगमें गायें हैं।।
                       अनूप कुमार अनुपम 

सोमवार, जून 04, 2018

मैं कविता नहीं लिखता तेरी तस्वीर बनाता हूं‌

मैं कविता नहीं लिखता तेरी तस्वीर बनाता हूं
अपने लहू के रंगों से कागज पे लकीर बनाता हूं

बादल सी उतरे धरती पे दिल मेरे तूं कोहरा बन के।
मैं खयालो की दुनिया में उसको कश्मीर बनाता हूं।

                           -अनूप कुमार अनुपम







शुक्रवार, जून 01, 2018

होठों पे दबी दबी सी खामोशियां रह गईं

होठों पे दबी दबी सी ख़ामोशियाँ रह गयी ंं।
तुम तो नहीं हो मगर ये सिसकियाँ रह गयी ंं।

गले से नीचे उतरती नही ये दुनिया की बातें।
तुम चले तो गये मगर ये हिचकियाँ रह गयीं।

आँखों की रोशनी से अंग अंग था जल गया।
हम पे गिरीं थीं कभी ओ बिजलियाँ रह गयी ं

खुद के ही सवाल पर नजर अंदाज करते रहे।
झुकी झुकी सी पलकें ओ शर्मिंदगियां रह गयी ं

अनूप तेरा इलाका भले ही छोड़ आयें हैं हम।
हुक्म ए मोहब्बत से बधीं ओ बेड़ियां रह गयी ंं।
                        -अनूप कुमार अनुपम 

गुरुवार, मई 31, 2018

ये शाम जब भी ढलता है तेरी याद आती है

ये शाम जब भी ढलता है तेरी याद आती है
दिन जब भी निकलता है तेरी याद आती है

  नहीं भूल सका मैं सनम तेरी मोहब्बत को
बिजली जब भी चमकती है तेरी याद आती है

नहीं कह सकता मैं हर दर्द को अल्फाजों में
चांदनी छत पे बिखरती है तेरी याद आती है

बस यूं ही खामोश रह के सह लेता हूं हर गम
कोई दिल जब दुखाता है तेरी याद आती है

सपने कभी आंखों से ओझल नही हो पाते
जब शाम सुहानी हो तो तेरी याद आती है
            -अनूप कुमार अनुपम 

जीवन के हर पन्ने पे कुछ लिखता चलूं

जीवन के हर पन्ने पे कुछ लिखता चलूं।
यादों के हर लम्हों पे कुछ कहता चलूं।

किसे खबर है अब कहां ये शाम ढल जाए।
मैं सांसों की भट्ठी को हवा देता चलूं

मेरी तन्हाइयों में किसी ने सुने नहीं मेरे गीत।
    मैं गीतों को तुझमें ही गुनगुनाता चलूं।

दुनिया मुझे बदनामी कहे सबाबी या शराबी कहे।
    मैं दीवानों के जैसे लड़खड़ाता चलूं।

ना करना मेरी कोई भी दुआ तूं मंजूर मेरे खुदा।
मैं सबके लिए सर अपना झुकाता चलूं।
          -अनूप कुमार अनुपम

बुधवार, मई 30, 2018

काश मोहब्बत का ओ जमाना मिल जाता

काश मोहब्बत का ओ जमाना मिल जाता
हमसफर फिर वही पुराना मिल जाता

कभी निकली थी तेरे होठों से पहली बार
सुनने को फिर वही तराना मिल जाता

यहां तक कोई ना बस सका है मेरे जहन में
समाॅं अब फिर वही सुहाना मिल जाता

मोहब्बत हमको तुम्हीं से है अब भी रुसवाई पर
एतबार तुमको हो जाये हमें जमाना मिल जाता

मेरे आशियां में उजाले तेरी ही यादों के हैं।
तुम दिख जाओ हमें तो खजाना मिल जाता।

डूब जाते सनम तेरे आंसू के इक कतरे में।
अगर पीने को पूरा ये मैखाना मिल जाता।

ये ना पूछो कितनी दिलचस्प ये कहानी होगी।
तीर-ए-नजर को मेरे ओ निशाना मिल जाता।
          -अनूप कुमार अनुपम 

मंगलवार, मई 29, 2018

हां तूं वही है

हां तूं वही है ।
जिसे मैं ढूंढता रहा सपनों की गलियों में
फूलों और कलियों में उड़ती तितलियों में।।
हां तूं वही है।
जिसे मैं ढूंढता रहा मय भरी शामों में
गीता के ज्ञानों में सुबह की अजानों में।।
हां तूं वही है।
इन मस्त हवाओं में इन रंगीन फिजाओं में
कभी घटाओं में कभी सहराओं में
हां तूं वही है
कभी सितारों के आगन में कभी सपनों के सावन में
कभी रातों के गुफ्तगू में कभी गुलाबों की खुशबू में
हां तूं वही है।

           शायर -अनूप कुमार मौर्य

सोमवार, मई 28, 2018

हम ढूंढते रह गए उनको बेगानों की तरह

हम ढूंढते रह गए उनको बेगानों की तरह।
मिले भी किसी रोज तो मेहमानों की तरह।

कभी किया नहीं तुमने हमपे जरा भी रहम।।
हम तो पेश आयें हैं हमेशा इन्सानों की तरह।
                  -अनूप कुमार अनुपम




शुक्रवार, मई 25, 2018

साकी बहुत मिले यहां तक मैखाने में

साकी बहुत मिले यहां तक मैखाने में।
ओ असर नहीं था उन पयमानों में।

उसे क्या खबर जिसने ये आग लगाई है।
कितना जले हैं हम आग बुझाने में।

जब कारवां से मंजिल तक कुछ शेष ना रहा।
लोग फिर आए हैं हमदर्दी जताने में।

चर्चा तो अब हो रहा है मेरा जमाने में।
जब नाकाम हो गए हैं खुद को समझाने में।

कितनों ने जख्मों पर मरहम लगाया।
कितने तो खुश थे राख को उड़ाने में।
         -अनूप कुमार अनुपम 

गुरुवार, मई 17, 2018

हम साज हैं बेचैन ओ संगीत लिए फिरा करतें हैं

हम साज हैं बेचैन ओ संगीत लिए फिरा करतें हैं
आंखों में जलवा ए नुमाइश की रीत लिए फिरा करते हैं

पिरोकर लाएंगे उनको अब गजलों में जरुर
सितार की झनकारों में जो मेरे गीत लिये फिरा करतें हैं

कलम की बन्दिशें पहुंचेगीं मेहमानों तक जरूर
जो हार का मजा उनकी जीत में लिए फिरा करते हैं

तारीफें अपनी करना मुझे गवारा नहीं
उनके समंदर से बस यही सीख लिए फिरा करतें हैं

अनूप मिल जाएं ओ तो कहना है उनसे
हम खुद में ही उनके जैसा इक मीत लिए फिरा करतें हैं
                           शायर-अनूप कुमार मौर्य

बुधवार, मई 16, 2018

कयामत का ओ शहर जमुना का किनारा

कयामत का ओ शहर जमुना का किनारा
मोहब्बत की कश्ती का ऐहसान आज भी है
नाज करती है आज सारी खुदाई जिस पे
दिल की दहलीज पे बरसती आसमां की दुअा
सबनम में छुपी उसकी इक मुस्कान आज भी है।।
जन्नत की दरिया में खिला इक कोहिनूर-ए-कवल
फरमाये आशिकओं ने इस पे अपनी मोहब्बत के गजल
निकल कर तमाम ख्यालातों से एक दिन मैने देखा
उसकी चाहत धड़कता मेरा दिल
गूंजती उन्हीं मीनारों में मेरे अतीत की कहानियां शताब्दियां गुजर गयीं। मेरा इम्तहान आज भी है
अरमानों के अर्श पर इश्क के फर्ज पर
दिल के अरमानों पे हस्तियां मैं बनता चलूं
रात का ख्वाब बनकर आसमां से निकल कर
सितारों के आंचल से नूर की चांदनी हर वक्त मुझपे
बरसाया करे
बादलों के आशियां में गजलों की जुबां में
मोहब्बत की मशहूर हस्ती का मकान आज भी है

                                  अनूप कुमार अनुपम 

रविवार, मई 13, 2018

रोम रोम में तुझको बसाया

रोम रोम में तुझको बसाया
प्यार का तूं कोई गीत सुनाए
अक्छर अक्क्षर मुझको सिखाए
मुझ में आके ओ घुल जाए

वन वन डोले मन मन डोले
नैनन की तू भाषा बोले
डोल के सारा जग थक जाए

रंग रंग में तू है पगली
संग संग में तु है पगली
मुझको भी रहना सिखलाये

एक रंग है एक संग है
दोनो को अब एक पसंद है
आओ मिलकर गीत ये गाएं
प्यार का तूं कोई गीत सुनाएं
               -अनूप कुमार अनुपम
                    

शुक्रवार, मई 11, 2018

नजरिया ये जिन्दगी का था

नजरिया ओ जिन्दगी का था।।
कसूर ये दिल की लगी का था।।
इजहार इकरार का कोई शिकवा नहीं।
   रिश्ता उनसे बंदगी का था।

हर किसी से उनकी ही बातें किया करते थें ।     
मगर सामना इक अजनबी का था।

  गुलसन में वो बहारों से खिले हुए थे।
   कुछ हुनर उनमे आशिकी का था।

आया था जिन्दगी में मेहमान की तरह।
हम दुढ़ते हैं आज भी किस गली का था।
                     -अनूप कुमार अनुपम 

सोमवार, मार्च 12, 2018

फिरते पागल जैसे हैं

  उसने देखा एक नज़र फिरते पागल जैसे हैं।
धूप से आँच लगे न मुझको छाये बादल जैसे हैं।

पँखुड़ियों से होठ तुम्हारे चले कहीं बाहों के सहारे।
खोये हैं हम खाब में जिनके ओ लगते मखमल जैसे हैं।

कब से तरसी हैं निगाहें तुझे बुलायें मेरी पनाहें।
ऐ मन्जिल तेरी राहों में हम लिपटे आँचल जैसे।

बहती हुई ये मधुर हवायें कुछ ज़ख्म नये पिरोती हैं।
हैं बसे हुए आँखों में मेरे ओ दिखते काजल जैसे हैं।

गीत ग़ज़ल सब तेरी बातें घुट घुट कर करती हैं रातें।
चाहत है उन क़दमों की बंधे उस पायल जैसे हैं।
                            -अनूप कुमार अनुपम 

पलकों के शामियाने में एक पैगाम लिखा था



 पलकों के शामियाने में एक पैगाम लिखा था।
  जब उनको हमने सलाम लिखा था।


नुमाइस जो हमारे अंदाज तक चुरा ले गए हैं।
         बदले में ये दिल इनाम रखा था।


 ये भटकती हवाएं खुसबू वहीँ से लातीं हैं
     जहाँ पे हमने कभी गुलदान रखा था


      ओ चेहरे इश्क के बादशाह निकले।
      दीवानेपन में जिन्हें अनजान रखा था।


 ये मदहोशियों के इशारे उन्हीं के थे।
 कभी दिन को रात और सुबह को शाम लिखा था।
 
                 -अनूप कुमार अनुपम 

उस पायल की झनकार सुन सब लोग हुए मतवाले हैं



     उस पायल की झनकार सुन सब लोग हुए मतवाले हैं
    सब फेंक दिए हथियार उन्होंने जो भी सराफत वालें हैं

     सरक जाये न सर से चुनरी ये तो क़यामत वालें हैं
    समा कहीं ये बदल न जाये ये सूरज ढलने वालें हैं

     तेरी घटा से बूंद गिरे तो हम लोग पिघलने वाले हैं
    पिला दे सबको भर-भर प्याला सब लोग हुए दिवाले हैं

     तेरी चाहत में सब तड़फे ये तेरी मोहब्बत वाले हैं 
     उस पायल की झनकार सुन सब लोग हुए मतवाले हैं
                         अनूप कुमार अनुपम 

अब लगती तू परायी है ,ये नयी चेतना आयी है

दिवाली आई है


                  चले आओ दिवाली आयी
  सपने मैंने सजोंकर रखे थे बस तेरी उम्मीदों  पर
  आकर घुल जायेंगे तुझमे अबकी बार तीजों पर
    प्रीत भरे इस उपवन में तु नए पुष्प खिलाई है
                      चले आओ दिवाली आयी है

    मिटटी का एक दीप बनाकर सपनों की बाती बिछाकर
   तेरी याद में सावन बीते अब दिल में दीप जलायी है
                  चले आओ दिवाली  आयी है

शाम ये ढलने से पहले दीप ये बुझने से पहले
अपने लव में समा लो मुझको ऐसा अवसर लायी है
           चले आओ दिवाली आयी है

                                                                          -अनूप कुमार अनुपम
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