मैंने जो नगमें गायें हैं
इन वादियों में इन घाटीओं में।
महफिलों में और तन्हाइयों में।
ओ सदायें गूंजती रहेंगी सदा।
जब तक ये दुनिया ये आलम रहेगा।
खनकती रहेगी तेरी पायल।
इन्हीं वादियों में।मैं उसी पायल की धुन पर
नए-नए कविताओं की नई-नई दुनिया रचता रहूंगा।
तुमने इन फिजाओं में जो खुशबू बिखराई है।
ओ इन हवाओं में महकती रहेंगीं सदा।
मैं उसी खुशबू में मतवाला होकर,
तुम से रूबरू होता रहूंगा।
मुझको ऐसा एहसास होगा।
तुम हो यही कही पर, इन्हीं नजारों में,
इन्हीं बहारों में,
छुप कर कहीं से
देख रही हो मुझे।
आवाज देती हो हाथ बढ़ाती हो।
मगर ये जाने कैसे मुझसे छूट जाते हैं।
मैं भटकता रह जाऊंगा इसी तरह।
गर तुमने मेरा हाथ ना थामा तो।
कहीं से आ जाओ इधर।
एक झलक दे जाओ,
मगर आओ तो सही।
मेरे हर शब्द तुझे ही तो बुलाते हैं।
हां यह शब्द मैंने ही रचे हैं।
मगर ये तेरे जलवों की ही तो करामात है।
तुम चली आई तो,
यही शब्द बसंत बन कर
फिर खिलखिलाने लगेंगें।
ना आयी तो पतझड़ में गिरे
नींम के सूखे फूलों की तरह सूख जाएंगे।
मैंने जो नगमें गायें हैं।।
अनूप कुमार अनुपम