तुझ से मिलने आया जब भी तुम होकर लौटा हूं मैं।
लगता है तुझ में ही शाय़द गुम होकर लौटा हूं मैं।।
भटका जिस जंगल में बरसों वह यादों का उपवन था।
छूकर देखा चन्दन को कुमकुम होकर लौटा हूं मैं।।
-अनूप कुमार अनुपम
छप्पर में हमारे हमें आराम बहुत है।। मिलता यहाँ पे हमको विश्राम बहुत है।। शहरों में खिली सुब्ह मुबारक रहे तुमको।। मुझको तो मेरे गाँव की ये...
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