झुके सर बज्म में अपना कभी वह काम मत करना।
बहुत बदनाम कर डाला है् अब बदनाम मत करना।
निगाहें इश्क़ ने देखा यहां बेदाग कोई दर।
उछालें फिर अगर कीचड़ उन्हें इल्ज़ाम मत करना।।
दिये दिल के जलायें हैं यहां गम के अधेरों में।
सहर होने को् आयी है कहीं फिर शाम मत करना।।
बहारें कर रहीं कविता हवा के मन्द झोंकों से।
हवा गर घाव भर जाये इसे ईनाम मत करना।।
किताबे इश्क में मेरा सुकूं से नाम रहने दो।
जरा से शौक के खातिर हमें बेनाम मत करना।
-अनूप कुमार अनुपम
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