ये् दावे से् अपना, ज़िगर बोलता है।।
कि दुनिया में,अक्लो हुनर बोलता है।।
है् बातों का् जो भी, असर बोलता है।।
मिरा गाँव क़स्बा, नगर बोलता है।।
ओ जब भी जहाँ भी, जिधर बोलता है।।
हमेशा ही् झूठी, ख़बर बोलता है।।
कहा था ये् मैंने की्, मत बोलना तुम।।
ओ् क़ायल है् देखो, मगर बोलता है।।
भरोसा नहीं कोई, सीरत पे उसकी।।
ओ बातें इधर की, उधर बोलता है।।
जो् औरों से नज़रें, मिलाता नहीं था।।
छुपा कर ओ हमसे, नज़र बोलता है।।
ये उम्मीद सब हैं, लगा कर के बैठे।।
कि अबकी दफ़ा, ओ किधर बोलता है।।
-अनूप, अनुपम
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