रविवार, मार्च 09, 2025

उड़ के जाने कहां से धुआं आ गये



212       212     212     212
उड़ के जानें कहाँ से, धुआँ आ गये।।
  रूबरू आज़ ज़ख्मे, निशाँ आ गये।।

  झूठ छल दम्भ के, आज़ बाज़ार में।।
तुम मुहब्बत का लेके, दुकाँ आ गये।।

उसने धरती पे जब भी,जलाए दिये।।
भर के बाहों में हम,आसमाँ आ गये।।

   यूं किसी से नहीं, फिर हुआ राब्ता।।
        दरमियाँ तेरे मेरे, मकाँ आ गये।।

जाने किसकी रुहानी, ग़ज़ल छू गयी।।
    बेजुबानों के मुँह में, ज़बाँ आ गये।।

      कोई तेरी यहाँ, बात करता नहीं।।
कैसी दुनिया है, ये हम जहाँ आ गये।।
                           - अनूप अनुपम 















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