हम साज हैं बेचैन ओ संगीत लिए फिरा करते हैं।
आंखों में जलवा-ए-नुमाइश की रीत लिए फिरा करते हैं।।
पिरो कर लायें हैं उन्हें आजकल ग़ज़लों में।
सितार के झनकारो में जो मेरे गीत लिये फिरा करते हैं।।
-अनूप कुमार अनुपम
छप्पर में हमारे हमें आराम बहुत है।। मिलता यहाँ पे हमको विश्राम बहुत है।। शहरों में खिली सुब्ह मुबारक रहे तुमको।। मुझको तो मेरे गाँव की ये...
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