मैं कविता नहीं लिखता तेरी तस्वीर बनाता हूं
अपने लहू के रंगों से कागज पे लकीर बनाता हूं
बादल सी उतरे धरती पे दिल मेरे तूं कोहरा बन के।
मैं खयालो की दुनिया में उसको कश्मीर बनाता हूं।
-अनूप कुमार अनुपम
छप्पर में हमारे हमें आराम बहुत है।। मिलता यहाँ पे हमको विश्राम बहुत है।। शहरों में खिली सुब्ह मुबारक रहे तुमको।। मुझको तो मेरे गाँव की ये...
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