शुक्रवार, जून 15, 2018

इश्क ने हमे ऐसे महल में लाके छोड़ा है।

इश्क ने हमें ऐसे महल में लाके छोड़ा है।।
         जहां मेरे सिवा और कोई नही है।।

टकराकर इन्ही दीवारों से मेरी धडकनें।
       फिर मुझ तक ही लौट आतीं हैं।।
         
        मैं खामोश हूं।लेकिन मुझे शक है।
      कोई तो है यहां जो गीत गा रहा है।।
       
                 इन्हीं गीत के सुर-तालों ने।    
     मेेरे जीवन के सुरतालों को तोड़कर।।
 
      कुछ नूपुर लगे हुये हैं एक धागे में।
            समेट लिया है जब कभी भी।।

             कहीं भी ओ खनक जातें हैं।
          तो हम टूट कर बिखर जातें हैं।

              -अनूप कुमार अनुपम 

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