मंगलवार, जून 26, 2018

कलम में हमारे ओ धार आ गई है

      कलम में हमारे ओ धार आ गई है।
      जो मां हंस पे हो सवार आ गई है।।

  ये दुनिया तो लगती थी वीरान मुझको।
    जो तुम आ गये तो बहार आ गई है।।

    वतन का कलेजा फटा जा रहा अब।
   सियासत की ऐसी फुहार आ गई है।।

    ये सावन यहां अब बरसता नहीं तो।
        कलेजे मे भू के दरार आ गई है।।

          यहीं थे यहीं हो यहीं क्या रहोगे।
        चलो साथ मेरे कतार आ गई है।।
   
        सियासी ये ढांचा बदलना पड़ेगा।
        वतन के सपूतों गुहार आ गई है।।
       
               -अनूप कुमार अनुपम 

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