जिसने मुझे हर खुशी दी है।
जिसने मुझे ये जिंदगी दी है।
जो अपनी यादों से कभी दूर नहीं जाने देता।
उसे मेैं बेवफा कैसे कह दूं।
चला तो मेरे साथ कुछ दूर ही सही।
रुलाया ही मगर अपनाया तो सही।
जो हमें कभी तन्हा नहीं रहने दिया।
उसे मैं खता कैसे कह दूं।
चलो, मैं बहक गया था।
किसी अनजान रस्ते पे भटक गया था।
जो बेवक्त आके सताता रहता है मुझे।
उसको मैं सपना कैसे कह दूं।
ओ जख्म ही दे मैं मुस्कुराकर सह लूं।
ऐसी ताकत नहीं है उसके बगैर रह लूं।
क्या है उसकी मर्जी ये तो बस रब ही जाने।
मैं उसे अपना कैसे कह दूं।
-अनूप कुमार अनुपम
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