बुधवार, मई 30, 2018

काश मोहब्बत का ओ जमाना मिल जाता

काश मोहब्बत का ओ जमाना मिल जाता
हमसफर फिर वही पुराना मिल जाता

कभी निकली थी तेरे होठों से पहली बार
सुनने को फिर वही तराना मिल जाता

यहां तक कोई ना बस सका है मेरे जहन में
समाॅं अब फिर वही सुहाना मिल जाता

मोहब्बत हमको तुम्हीं से है अब भी रुसवाई पर
एतबार तुमको हो जाये हमें जमाना मिल जाता

मेरे आशियां में उजाले तेरी ही यादों के हैं।
तुम दिख जाओ हमें तो खजाना मिल जाता।

डूब जाते सनम तेरे आंसू के इक कतरे में।
अगर पीने को पूरा ये मैखाना मिल जाता।

ये ना पूछो कितनी दिलचस्प ये कहानी होगी।
तीर-ए-नजर को मेरे ओ निशाना मिल जाता।
          -अनूप कुमार अनुपम 

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