कयामत का ओ शहर जमुना का किनारा
मोहब्बत की कश्ती का ऐहसान आज भी है
नाज करती है आज सारी खुदाई जिस पे
दिल की दहलीज पे बरसती आसमां की दुअा
सबनम में छुपी उसकी इक मुस्कान आज भी है।।
जन्नत की दरिया में खिला इक कोहिनूर-ए-कवल
फरमाये आशिकओं ने इस पे अपनी मोहब्बत के गजल
निकल कर तमाम ख्यालातों से एक दिन मैने देखा
उसकी चाहत धड़कता मेरा दिल
गूंजती उन्हीं मीनारों में मेरे अतीत की कहानियां शताब्दियां गुजर गयीं। मेरा इम्तहान आज भी है
अरमानों के अर्श पर इश्क के फर्ज पर
दिल के अरमानों पे हस्तियां मैं बनता चलूं
रात का ख्वाब बनकर आसमां से निकल कर
सितारों के आंचल से नूर की चांदनी हर वक्त मुझपे
बरसाया करे
बादलों के आशियां में गजलों की जुबां में
मोहब्बत की मशहूर हस्ती का मकान आज भी है
अनूप कुमार अनुपम
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