गुरुवार, मई 31, 2018

ये शाम जब भी ढलता है तेरी याद आती है

ये शाम जब भी ढलता है तेरी याद आती है
दिन जब भी निकलता है तेरी याद आती है

  नहीं भूल सका मैं सनम तेरी मोहब्बत को
बिजली जब भी चमकती है तेरी याद आती है

नहीं कह सकता मैं हर दर्द को अल्फाजों में
चांदनी छत पे बिखरती है तेरी याद आती है

बस यूं ही खामोश रह के सह लेता हूं हर गम
कोई दिल जब दुखाता है तेरी याद आती है

सपने कभी आंखों से ओझल नही हो पाते
जब शाम सुहानी हो तो तेरी याद आती है
            -अनूप कुमार अनुपम 

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें

छप्पर में हमारे हमें आराम बहुत है

छप्पर में हमारे हमें आराम बहुत है।। मिलता यहाँ पे हमको विश्राम बहुत है।। शहरों में खिली सुब्ह मुबारक रहे तुमको।। मुझको तो मेरे गाँव की ये...