नजरिया ओ जिन्दगी का था।।
कसूर ये दिल की लगी का था।।
इजहार इकरार का कोई शिकवा नहीं।
रिश्ता उनसे बंदगी का था।
हर किसी से उनकी ही बातें किया करते थें ।
मगर सामना इक अजनबी का था।
गुलसन में वो बहारों से खिले हुए थे।
कुछ हुनर उनमे आशिकी का था।
कुछ हुनर उनमे आशिकी का था।
आया था जिन्दगी में मेहमान की तरह।
हम दुढ़ते हैं आज भी किस गली का था।
हम दुढ़ते हैं आज भी किस गली का था।
-अनूप कुमार अनुपम
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