जीवन के हर पन्ने पे कुछ लिखता चलूं।
यादों के हर लम्हों पे कुछ कहता चलूं।
किसे खबर है अब कहां ये शाम ढल जाए।
मैं सांसों की भट्ठी को हवा देता चलूं
मेरी तन्हाइयों में किसी ने सुने नहीं मेरे गीत।
मैं गीतों को तुझमें ही गुनगुनाता चलूं।
दुनिया मुझे बदनामी कहे सबाबी या शराबी कहे।
मैं दीवानों के जैसे लड़खड़ाता चलूं।
ना करना मेरी कोई भी दुआ तूं मंजूर मेरे खुदा।
मैं सबके लिए सर अपना झुकाता चलूं।
-अनूप कुमार अनुपम
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