हां तूं वही है ।
जिसे मैं ढूंढता रहा सपनों की गलियों में
फूलों और कलियों में उड़ती तितलियों में।।
हां तूं वही है।
जिसे मैं ढूंढता रहा मय भरी शामों में
गीता के ज्ञानों में सुबह की अजानों में।।
हां तूं वही है।
इन मस्त हवाओं में इन रंगीन फिजाओं में
कभी घटाओं में कभी सहराओं में
हां तूं वही है
कभी सितारों के आगन में कभी सपनों के सावन में
कभी रातों के गुफ्तगू में कभी गुलाबों की खुशबू में
हां तूं वही है।
शायर -अनूप कुमार मौर्य
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