ज़िन्दगी तबाह थी हजार देखते रहे।
कर सके न एक भी सुधार देखते रहे।।
दोस्तों से् दूर थे मिले नही क़रीब से।
दोस्ती मे् आ गयी दरार देखते रहे।।
-अनूप कुमार अनुपम
छप्पर में हमारे हमें आराम बहुत है।। मिलता यहाँ पे हमको विश्राम बहुत है।। शहरों में खिली सुब्ह मुबारक रहे तुमको।। मुझको तो मेरे गाँव की ये...
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