बुधवार, जुलाई 18, 2018

हवा खुशबुओं की जो् क़ातिल रही है

     
      ‌हवा खुशबुओं की जो् क़ातिल रही है।
      वही हर कली से गले मिल रही है।।

      गगन ने सितारे बिछाये जमीं पे।
      चमकती धरा ओस से खिल रही है।।

      बिरह बेदना गीत गाते पपीहे।
      ये् मीठी चुभन अब चुभन सिल रही है।।
     
      घटायें पिलाने लगीं आज मदिरा।
      नशे में कदम हैं जमीं हिल रही है।।

      नजर के नजारे चुरायें हैं उसने
      झुका के नजर अब चुरा दिल रही है    
                         -अनूप कुमार अनुपम
 
    
 
   

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