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छप्पर में हमारे हमें आराम बहुत है
छप्पर में हमारे हमें आराम बहुत है।। मिलता यहाँ पे हमको विश्राम बहुत है।। शहरों में खिली सुब्ह मुबारक रहे तुमको।। मुझको तो मेरे गाँव की ये...
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2122 2122 2122 212 ऐब पर डाला है पर्दा रेशमी रूमाल का।। आदमी ख़ुद बुन रहा ताना बुरे आमाल का।। कर लिए तरक़ीब सारी यत्न ढेरों भ...
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122 122 122 122 बड़े नासमझ हो, वफ़ा ढूँढते हो।। कि दुनिया में आके, ख़ुदा ढूँढते हो।। पता भी है तुमको,...
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122 122 122 122 ये् दावे से् अपना, ज़िगर बोलता है।। कि दुनिया में,अक्लो हुनर बोलता है।। है् बातों का् जो भी, असर बोलता है।। मिरा गाँ...
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