ज़िन्दगी मेरी किताब है।
लिखी गयी यह कैसे कैसे।
पता नही कुछ राज है।।
कुछ पन्ने बारिश में गले।
कुछ लेके हमदर्द चले ।।
कुछ फटे वेद पुराणों जैसे ।
कुछ लगते गीता कुरानों जैसे।।
कुछ पर तेरा नाम लिखा है ।
कुछ पर रेखाएं खीचीं गयीं हैं ।।
कुछ आँखों की जलधारा से।
बार बार सीचीं गयीं हैं।।
दिखते हैं कुछ बंजर जैसे ।
कुछ में दिखा समन्दर जैसे ।।
कुछ पन्ने हैं कोरे कोरे।
सब हैं बस तेरे लिए छोड़े ।।
कर आके तू इसको पूरा।
तू अपने कलम की साज है ।।
हाँ अंदाज़ यही आवाज यही।
कुछ फटे वेद पुराणों जैसे ।
कुछ लगते गीता कुरानों जैसे।।
कुछ पर तेरा नाम लिखा है ।
कुछ पर रेखाएं खीचीं गयीं हैं ।।
कुछ आँखों की जलधारा से।
बार बार सीचीं गयीं हैं।।
दिखते हैं कुछ बंजर जैसे ।
कुछ में दिखा समन्दर जैसे ।।
कुछ पन्ने हैं कोरे कोरे।
सब हैं बस तेरे लिए छोड़े ।।
कर आके तू इसको पूरा।
तू अपने कलम की साज है ।।
हाँ अंदाज़ यही आवाज यही।
तूं ही मेरी किताब है।।
---अनूप कुमार अनुपम
---अनूप कुमार अनुपम
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