सोमवार, जुलाई 11, 2022

जाम हाथों से यूँ छूटकर गिर पड़े।।

जाम हाथों से यूँ छूटकर गिर पड़े।
जितने शीशे थे सब टूटकर गिर पड़े।।

अश्क आँखों में थे जो छिपे प्यार के।
रूख पे मेरे वही रूठ कर गिर पड़े।।

हाल पूछों न कुछ उसके दीदार का।
कितने भँवरे मज़ा लूटकर गिर पड़े।।

उनके माथे पे था एक दर्द ए शिकन।
फूल लहजों के सब फूट कर गिर पड़े।।

यार हमने उगाये फजा़ में हिना।
उनके हाथों पे जो बूटकर गिर पड़े।।

ये है हिज्रे सफ़र हो न उसको ख़बर।
ज़हर सारा हमीं घूँटकर गिर पड़े।।
              
                -अनूप कुमार अनुपम

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें

छप्पर में हमारे हमें आराम बहुत है

छप्पर में हमारे हमें आराम बहुत है।। मिलता यहाँ पे हमको विश्राम बहुत है।। शहरों में खिली सुब्ह मुबारक रहे तुमको।। मुझको तो मेरे गाँव की ये...