इस कदर रूठ कर मुस्कुरा दीजिए।
मेरे ज़ख्मों को भी कुछ हवा दीजिए।।
गर न चाहें तुम्हें फिर भी चाहें तुम्हें।
अपने क़ातिल को ऐसी सजा दीजिए।।
पाँव थक जायें न चलते चलते कहीं।
उसके घर का कोई तो पता दीजिए।
अबके बिछड़े तो शायद मिले ना कभी।
राज जो कुछ भी है सब बता दीजिए।।
ख़्वाब आँखों के ओ पढ़ न डाले कहीं।
मेरी हसरत को उससे छुपा दीजिए।।
ऐसे बीमार को तुम हो देते ज़हर।
दर्द बनकर कोई तो दवा दीजिए।।
कन्ठ अवरुद्ध होने लगें हैं मेरे।
मेरे नगमों को अपना गला दीजिए।।
अब रहे मत ओ बाकी किसी की कशिस।
मेरे दुश्मन को भी मशविरा दीजिए।।
प्यार को प्यार से अब लगा कर गले।
ऐब जो भी हैं उसके भुला दीजिए।।
आये गीतों में फिर इक नयी ताज़गी।
मुल्क जंगल है अब इक लता दीजिए।।
अश्क ढूँढे़ नज़ारों में चारों तरफ ।
मेरे आँखों को सावन बना दीजिए।।
धूप ऐसी रहे की पिघल जाऊँ मैं।
मुझको इतना न अपनी वफ़ा दीजिए।।
हम तो भूखे हैं नंगे भिखारी सही।
तेरे घर में जो कुछ है बचा दीजिए।।
चाँदनी रात तारों की सौगात हो।
ऐसी महफ़िल में उसको बुला दीजिए।
भूल जाना हमारी तो फितरत नहीं।
भूल जाऊँ अगर तो बता दीजिए।।
मैं हूँ गुमसुम कहीं उसके एहसास में।
नींद आये तो मुझको जगा दीजिए।।
गर छुपी हो किसी भी शराबों में ओ।
जाम जितने भी हों सब पिला दीजिए।।
चाक दिल है मेरा हैं हजारों सितम।
दर्द हद से जो गुज़रे रुला दीजिए।।
प्यास देखो पपीहे सदा दे रहे।
प्रेम की आज़ गंगा बहा दीजिए।।
-अनूप कुमार अनुपम
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