शनिवार, जुलाई 09, 2022

सिपाही क्या है जिसके हाथ से तलवार गिर जाये

सिपाही क्या है जिसके हाथ से तलवार गिर जाये।।
ओ मांझी क्या है जिसके हाथ से पतवाार गिर जाये।।

वही तलवार उनकी है वही हैं साहिबे मसनद।
कलम को धार दो यारों तो ये सरकार गिर जाये।।

ज़माने में बड़ा मुश्किल है सच को सच कहे देना।
पता भी है नहीं ये कब दरो-दीवार गिर जाये।।

सजा के फूल जिस पर ओ रखा था आलमारी में
हवाओं के उड़ानों ‌से वही अखबार गिर जाये।।

नज़र तो कर इधर भी की करम हो हाल पर मेरे।
नहीं तो क्या पता है कब दिले बीमार गिर जाये।।

तुम्हें अपनी पड़ी है बस तुम्हारा काम बनता है।
तुम्हारा क्या हमारा तो भले किरदार गिर जाये।।

हमारे पास फिर भी है बची ये प्यार की दौलत।
न जाने कब तुम्हारे हुस्न का बाज़ार गिर जाये।।
                                -अनूप कुमार अनुपम

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