शनिवार, जुलाई 30, 2022

चला गया

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खाबों के चरागों को बुझाता चला गया।।
इक शख्स था जो राह दिखाता चला गया।।

फूलों से सिकायत नहीं काटों से जा मिले।
हर शख्स मुझे यूं ही सजाता चला गया ।।

बादल ओ कहानी तो कहानी ही रह गयी।
आबो-हवा आँखों से बहाता चला गया।।

गम हैं हुए रुसवा अब शीशे की चोट पे।
रोते हुए हर पल को हँसाता चला गया।।

रुख पे हैय उसके वह लिक्खी हुयी ग़ज़ल।
क़दमों के निशां मैय मिटाता चला गया।।

उसने जब ये पूँछा कि ठहरी कहाँ नज़र।
हर वक्त उसी दर को बताता चला गया।।

उस शख्स ने अनुपम को बदनाम है किया।
ऐबों कोअ जिसके मैं छुपाता चला गया।।
               -अनूप कुमार अनुपम

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