गुरुवार, जुलाई 14, 2022

उठ रही है अगर कल्पना गर कोई।।

212 212 212 222
उठ रही है अगर कल्पना गर कोई।
शब्द से पूछो लो भावना गर कोई।।

गीत बन जाऊँ मैं रंग लहराऊँ मैं।
हो रही हो कहीं प्रार्थना गर कोई।।

खास रक्खो न तुम दर्द है जो तेरा।
आम कर दो सभी व्यंजना गर कोई।।

श्याम गिरधर कहो चाहे नटवर कहो।
मन है कोई यहाँ अनबना गर कोई।।

दीप बनकर जलूँ साथ उसके चलूँ।
कर रही हो सखी वन्दना गर कोई।।

सात रंगों का स्वर है तुम्हारे लिए।
खींच दो तुम जहाँ अल्पना गर कोई।।

द्रोण को मैं हवन कर दूँ सारा जीवन।
कर ओ एकलव्य रहे साधना गर कोई।।

गीत को गावो तुम मन को बहलाओ तुम
प्राण पर हो लिखी अर्चना गर कोई।।

देख लो आके पलकों में क्या है रक्खा।
हर नज़र है हसीं आशना गर कोई।।
             
अपने आंचल में मुझको छुपा लेना तुम।
करते बादल झुके गर्जना गर कोई।।

देख पत्थर न फिर से चला देना तूँ।
मिल ओ जाये कभी आयना गर कोई।।

दे दे फाँसी मुझे मैं सितमगर तेरा।
चाहले यदि मुझे फाँसना गर कोई।।
              -अनूप कुमार अनुपम






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