212 212 212 212
सारे उड़ते हुये ओ गगन ले गये।।
फूल खुशियों के रंगो चमन ले गये।।
ख़्वाब आँखों में थे ओ चुरा कर कहीं।
आज नयनों से मेरे नयन ले गये।।
जुल्फ को इक अँधेरी गुफ़ा कह दिया।
ये अंधेरे मिरे सब किरन ले गये।।
मेरा क़ातिल है ओ देख हँस के ज़रा।
छीन मुझसे मेरा बांकपन ले गये।।
डोलियाँ देखो उनकी सज़ी प्यार से।
कितनी लाशों के ज़ालिम कफ़न ले गये।।
बज़्म में आज़ उनकी तरफदारी में।
उठ के महफ़िल से हम अन्जुमन ले गये।।
मन के मन्दिर से ओ आरती के लिए।
नोच भंवरों के सारे सुमन ले गये।।
मैं अकेला अकेला अकेला चला।
राह में मेरे तन से बदन ले गये।।
स्वप्न से है तरी आँसुओं से भरी।
साथ मीरा का कोई कथन ले गये।।
-अनूप कुमार अनुपम
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