गुरुवार, मई 31, 2018

ये शाम जब भी ढलता है तेरी याद आती है

ये शाम जब भी ढलता है तेरी याद आती है
दिन जब भी निकलता है तेरी याद आती है

  नहीं भूल सका मैं सनम तेरी मोहब्बत को
बिजली जब भी चमकती है तेरी याद आती है

नहीं कह सकता मैं हर दर्द को अल्फाजों में
चांदनी छत पे बिखरती है तेरी याद आती है

बस यूं ही खामोश रह के सह लेता हूं हर गम
कोई दिल जब दुखाता है तेरी याद आती है

सपने कभी आंखों से ओझल नही हो पाते
जब शाम सुहानी हो तो तेरी याद आती है
            -अनूप कुमार अनुपम 

जीवन के हर पन्ने पे कुछ लिखता चलूं

जीवन के हर पन्ने पे कुछ लिखता चलूं।
यादों के हर लम्हों पे कुछ कहता चलूं।

किसे खबर है अब कहां ये शाम ढल जाए।
मैं सांसों की भट्ठी को हवा देता चलूं

मेरी तन्हाइयों में किसी ने सुने नहीं मेरे गीत।
    मैं गीतों को तुझमें ही गुनगुनाता चलूं।

दुनिया मुझे बदनामी कहे सबाबी या शराबी कहे।
    मैं दीवानों के जैसे लड़खड़ाता चलूं।

ना करना मेरी कोई भी दुआ तूं मंजूर मेरे खुदा।
मैं सबके लिए सर अपना झुकाता चलूं।
          -अनूप कुमार अनुपम

बुधवार, मई 30, 2018

काश मोहब्बत का ओ जमाना मिल जाता

काश मोहब्बत का ओ जमाना मिल जाता
हमसफर फिर वही पुराना मिल जाता

कभी निकली थी तेरे होठों से पहली बार
सुनने को फिर वही तराना मिल जाता

यहां तक कोई ना बस सका है मेरे जहन में
समाॅं अब फिर वही सुहाना मिल जाता

मोहब्बत हमको तुम्हीं से है अब भी रुसवाई पर
एतबार तुमको हो जाये हमें जमाना मिल जाता

मेरे आशियां में उजाले तेरी ही यादों के हैं।
तुम दिख जाओ हमें तो खजाना मिल जाता।

डूब जाते सनम तेरे आंसू के इक कतरे में।
अगर पीने को पूरा ये मैखाना मिल जाता।

ये ना पूछो कितनी दिलचस्प ये कहानी होगी।
तीर-ए-नजर को मेरे ओ निशाना मिल जाता।
          -अनूप कुमार अनुपम 

मंगलवार, मई 29, 2018

हां तूं वही है

हां तूं वही है ।
जिसे मैं ढूंढता रहा सपनों की गलियों में
फूलों और कलियों में उड़ती तितलियों में।।
हां तूं वही है।
जिसे मैं ढूंढता रहा मय भरी शामों में
गीता के ज्ञानों में सुबह की अजानों में।।
हां तूं वही है।
इन मस्त हवाओं में इन रंगीन फिजाओं में
कभी घटाओं में कभी सहराओं में
हां तूं वही है
कभी सितारों के आगन में कभी सपनों के सावन में
कभी रातों के गुफ्तगू में कभी गुलाबों की खुशबू में
हां तूं वही है।

           शायर -अनूप कुमार मौर्य

सोमवार, मई 28, 2018

हम ढूंढते रह गए उनको बेगानों की तरह

हम ढूंढते रह गए उनको बेगानों की तरह।
मिले भी किसी रोज तो मेहमानों की तरह।

कभी किया नहीं तुमने हमपे जरा भी रहम।।
हम तो पेश आयें हैं हमेशा इन्सानों की तरह।
                  -अनूप कुमार अनुपम




शुक्रवार, मई 25, 2018

साकी बहुत मिले यहां तक मैखाने में

साकी बहुत मिले यहां तक मैखाने में।
ओ असर नहीं था उन पयमानों में।

उसे क्या खबर जिसने ये आग लगाई है।
कितना जले हैं हम आग बुझाने में।

जब कारवां से मंजिल तक कुछ शेष ना रहा।
लोग फिर आए हैं हमदर्दी जताने में।

चर्चा तो अब हो रहा है मेरा जमाने में।
जब नाकाम हो गए हैं खुद को समझाने में।

कितनों ने जख्मों पर मरहम लगाया।
कितने तो खुश थे राख को उड़ाने में।
         -अनूप कुमार अनुपम 

गुरुवार, मई 17, 2018

हम साज हैं बेचैन ओ संगीत लिए फिरा करतें हैं

हम साज हैं बेचैन ओ संगीत लिए फिरा करतें हैं
आंखों में जलवा ए नुमाइश की रीत लिए फिरा करते हैं

पिरोकर लाएंगे उनको अब गजलों में जरुर
सितार की झनकारों में जो मेरे गीत लिये फिरा करतें हैं

कलम की बन्दिशें पहुंचेगीं मेहमानों तक जरूर
जो हार का मजा उनकी जीत में लिए फिरा करते हैं

तारीफें अपनी करना मुझे गवारा नहीं
उनके समंदर से बस यही सीख लिए फिरा करतें हैं

अनूप मिल जाएं ओ तो कहना है उनसे
हम खुद में ही उनके जैसा इक मीत लिए फिरा करतें हैं
                           शायर-अनूप कुमार मौर्य

बुधवार, मई 16, 2018

कयामत का ओ शहर जमुना का किनारा

कयामत का ओ शहर जमुना का किनारा
मोहब्बत की कश्ती का ऐहसान आज भी है
नाज करती है आज सारी खुदाई जिस पे
दिल की दहलीज पे बरसती आसमां की दुअा
सबनम में छुपी उसकी इक मुस्कान आज भी है।।
जन्नत की दरिया में खिला इक कोहिनूर-ए-कवल
फरमाये आशिकओं ने इस पे अपनी मोहब्बत के गजल
निकल कर तमाम ख्यालातों से एक दिन मैने देखा
उसकी चाहत धड़कता मेरा दिल
गूंजती उन्हीं मीनारों में मेरे अतीत की कहानियां शताब्दियां गुजर गयीं। मेरा इम्तहान आज भी है
अरमानों के अर्श पर इश्क के फर्ज पर
दिल के अरमानों पे हस्तियां मैं बनता चलूं
रात का ख्वाब बनकर आसमां से निकल कर
सितारों के आंचल से नूर की चांदनी हर वक्त मुझपे
बरसाया करे
बादलों के आशियां में गजलों की जुबां में
मोहब्बत की मशहूर हस्ती का मकान आज भी है

                                  अनूप कुमार अनुपम 

रविवार, मई 13, 2018

रोम रोम में तुझको बसाया

रोम रोम में तुझको बसाया
प्यार का तूं कोई गीत सुनाए
अक्छर अक्क्षर मुझको सिखाए
मुझ में आके ओ घुल जाए

वन वन डोले मन मन डोले
नैनन की तू भाषा बोले
डोल के सारा जग थक जाए

रंग रंग में तू है पगली
संग संग में तु है पगली
मुझको भी रहना सिखलाये

एक रंग है एक संग है
दोनो को अब एक पसंद है
आओ मिलकर गीत ये गाएं
प्यार का तूं कोई गीत सुनाएं
               -अनूप कुमार अनुपम
                    

शुक्रवार, मई 11, 2018

नजरिया ये जिन्दगी का था

नजरिया ओ जिन्दगी का था।।
कसूर ये दिल की लगी का था।।
इजहार इकरार का कोई शिकवा नहीं।
   रिश्ता उनसे बंदगी का था।

हर किसी से उनकी ही बातें किया करते थें ।     
मगर सामना इक अजनबी का था।

  गुलसन में वो बहारों से खिले हुए थे।
   कुछ हुनर उनमे आशिकी का था।

आया था जिन्दगी में मेहमान की तरह।
हम दुढ़ते हैं आज भी किस गली का था।
                     -अनूप कुमार अनुपम 

छप्पर में हमारे हमें आराम बहुत है

छप्पर में हमारे हमें आराम बहुत है।। मिलता यहाँ पे हमको विश्राम बहुत है।। शहरों में खिली सुब्ह मुबारक रहे तुमको।। मुझको तो मेरे गाँव की ये...