दुनिया को मेरे मौला तूं ऐसा इमाम दे।।
इन्सान की ज़बान पे अल्ला न राम दे।।
प्यासे हुये हैं सारे इन्हें इंतज़ाम दे।।
खाली पड़े हैं मयकदे भर भर के जाम दे।।
अब तो इधर उधर की न बातें तमाम कर ।।
बेरोज़गार हो गये सब सबको काम दे ।।
ये बस्तियाँ हैं जल रहीं तेरी मशाल से।।
हो रौशनी घरों में तूू्ँ ऐसा निज़ाम दे।।
घर में हमारे इल्म कि शम्मा जली रहे।।
हमको नया ज़माना नयी सुब्हो शाम दे।।
जीवों का रक्त पीना यहाँ जब हलाल है।।
ममता दया व करुणा को मालिक हराम दे।।
सद्भावना की ज्योति जला दे समाज में।।
फैली हुई कुरीतियों को रोकथाम दे।।
बोते सृजन के बीज जो मरुथल में हैं कहीं।
मजबूर उन किसानों को कुछ एहतराम दे।।
बिकने को आदमी यहाँ लाचार है बहुत ।।
शब्दों से मेरे चोट किसी को लगे नहीं।।
वाणी मेरी ये बस में हो मुझको लगाम दे।।
सब भेद भाव मन से मिटा दे मेरे अभी।।
रुचि है न जात पात में अनुपम ही नाम दे।।
-अनूप अनुपम