हम बना के रखें हैं ये मन आखिरी
है हमारा यही अब कथन आखिरी।।
उठ के जाने लगे जब जनाजा मिरा।
साथ में हो तिरंगा कफ़न आख़िरी।।
मौत महबूब बन कर गले मिल रही।
खूबसूरत है कितनी दुल्हन आखिरी।।
इतना ऊपर उठालो झुके ना कभी।
चूम आये तिरंगा गगन आखिरी।।
देके अपना लहू सींचते ही रहें।
सूख जाए न फिर से चमन आखिरी।।
-अनूप कुमार अनुपम