मैं तिरे बिन अधूरा अधूरी ग़ज़ल।।
तुम मिलो तो मुकम्मल हो मेरी ग़ज़ल।।
हर जगह है छुपी तू कहीं ढूँढ़ ले।।
तुझको चारों तरफ से है घेरी ग़ज़ल।।
मैंने उसको गुलाबी सुख़न है कहा।।
मैं हूँ जिसका सुख़न जो है मेरी ग़ज़ल।।
तेरे होने से रातें मिरी चाँदनी।।
बिन तिरे है अधेंरा अधेंरी ग़ज़ल ।।
तुम इशारों में कह दो अगर शायरी।।
मुझको कहने में कैसे हो देरी ग़ज़ल।।
ऐसा लहज़ा कि बातों से दिल को छुये।।
आरज़ू है हमारी ये तेरी ग़ज़ल।।
जिस नज़र को तरसते रहे उम्र भर।।
मुझ पे अब ओ निगाहें है फेरी ग़ज़ल।।
-(अनूप कुमार अनुपम)