शनिवार, जुलाई 22, 2017

कीचड़ में कमल खिलाया तुमने

कीचड़ में कमल खिलाया तुमने
गुम हो गयी थी अंधेरों में जिन्दगी मेरी
रोते को फिर हँसाया तुमने
लुटा इस गुलशन को रखवालों ने 
कसर छोड़ा नहीं बाहर वालों ने
काटों ने लिया हिसाब बराबर
रहता था जिनके साथ बराबर
आकर इस उजड़े गुलशन को
फिर से है महकाया तुमने
कीचड़ में कमल खिलाया तुमने
तेरा ही नाम अब होठों पर
लाऊंगा मैं जीवन भर
भूल जाऊंगा मैं कैसे तुझको
गिरा हुआ मैं खुद की नज़रों से
सबकी नज़रों में उठाया तुमने
कीचड़ में कमल खिलाया तूमने
पढ़ता हूँ जब तेरी कहानी
आँख से मेरी छलके पानी
तेरे आगन में मैं आके
भूल गया उस दुनिया को
भटक गया था अपनी राह से
फिर वही रस्ता दिखया तुमने
कीचड़ में कमल खिलाया तूमने
मंजिल मिले चाहे बिछड़े जमाना
दिल में है बस यही तराना
मंजर जो भी होगा सामने
मैं समझूंगा बुलाया आपने
देखेगा एक दिन जमाना
बस तुम मुझको भूल न जाना
खुली आँखों से इक सच्चा सपना
आज की रात दिखाया तुमने
कीचड़ में कमल खिलाया तूमने
              -अनूप कुमार अनुपम 

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