रविवार, सितंबर 23, 2018

तुझ से मिलने आया जब भी तुम होकर लौटा हूं मैं।

तुझ से मिलने आया जब भी तुम होकर लौटा हूं मैं।
लगता है तुझ में ही शाय़द गुम होकर लौटा हूं मैं।।

भटका जिस जंगल में बरसों वह यादों का उपवन था।
छूकर देखा चन्दन को कुमकुम होकर लौटा हूं मैं।।
                                      -अनूप कुमार अनुपम



रविवार, सितंबर 09, 2018

झुके सर बज्म में अपना कभी वह काम मत करना।

झुके सर बज्म में अपना कभी वह काम मत करना।
बहुत बदनाम कर डाला है् अब बदनाम मत करना।

निगाहें इश्क़ ने देखा यहां बेदाग कोई दर।
उछालें फिर अगर कीचड़ उन्हें इल्ज़ाम मत करना।।

दिये दिल के जलायें हैं यहां गम के अधेरों में।
सहर होने को् आयी है कहीं फिर शाम मत करना।।

बहारें कर रहीं कविता हवा के मन्द झोंकों से।
हवा गर घाव भर जाये इसे ईनाम मत करना।।

किताबे इश्क में मेरा सुकूं से नाम रहने दो।
जरा से शौक के खातिर हमें बेनाम मत करना।
                              -अनूप कुमार अनुपम

छप्पर में हमारे हमें आराम बहुत है

छप्पर में हमारे हमें आराम बहुत है।। मिलता यहाँ पे हमको विश्राम बहुत है।। शहरों में खिली सुब्ह मुबारक रहे तुमको।। मुझको तो मेरे गाँव की ये...