जो शायरी की दुनिया में गुमनाम बहुत हैं।।
कहते हैं सियासत में चलो नाम बहुत हैं।।
सच्चाई् झलकती नहीं तक़रीर में उनकी।।
मैंने कहा बैठो यहाँ कुछ हाल सुनाओ।।
सच्चाई् झलकती नहीं तक़रीर में उनकी।।
लफ़्फ़ाज़ियों से देते ओ पैग़ाम बहुत हैं।।
बाहों में मेरे बाहों के घेरे नहीं डालो।।
वैसे ही मेरे सर पे ये इल्ज़ाम बहुत हैं।।
दस्तार कभी ऐसों के क़दमों में न रखना।।
बाहों में मेरे बाहों के घेरे नहीं डालो।।
वैसे ही मेरे सर पे ये इल्ज़ाम बहुत हैं।।
दस्तार कभी ऐसों के क़दमों में न रखना।।
ख़ादी से बनी टोपियाँ बदनाम बहुत हैं।।
मैंने कहा बैठो यहाँ कुछ हाल सुनाओ।।
कहने लगें जाने दो अभी काम बहुत हैं।।
रावन मिले कोई तो मुझे उससे मिलाना।।
रावन मिले कोई तो मुझे उससे मिलाना।।
मौजूदा रमायन में बने राम बहुत हैं।।
जुल्फ़ों की घनी छाँव पे इल्ज़ाम न धरते।।
जुल्फ़ों की घनी छाँव पे इल्ज़ाम न धरते।।
हम लोग इसी क़ैद में नाकाम बहुत हैं।।
जब लोग चले आयें हैं बाज़ार की जानिब।।
उसने भी बढ़ाये हुए अब दाम बहुत हैं।।
खाये बिना ही सो गए मुफ़लिस के ये बच्चे।।
धन-धान्य भरे सड़ रहे गोदाम बहुत हैं।।
जंगल को फ़ना करके ओ हैं चैन से सोते।।
पशु पक्षियों के घर मचे कुहराम बहुत हैं।।
-अनूप अनुपम
जब लोग चले आयें हैं बाज़ार की जानिब।।
उसने भी बढ़ाये हुए अब दाम बहुत हैं।।
खाये बिना ही सो गए मुफ़लिस के ये बच्चे।।
धन-धान्य भरे सड़ रहे गोदाम बहुत हैं।।
जंगल को फ़ना करके ओ हैं चैन से सोते।।
पशु पक्षियों के घर मचे कुहराम बहुत हैं।।
-अनूप अनुपम
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