सोमवार, मई 26, 2025

ऐब पर डाला है पर्दा रेशमी रूमाल का

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ऐब पर डाला है पर्दा रेशमी रूमाल का।।
आदमी ख़ुद बुन रहा ताना बुरे आमाल का।।

कर लिए तरक़ीब सारी यत्न ढेरों भी मगर।।
जाल बस छँटता नहीं है मन हुआ जंजाल का।।

क़त्ल होते जा रहे नाहक गुलाबों के यहाँ।।
कितना प्यासा है ये आखि़र तिल तुम्हारे गाल का।।

दिल्लगी हमने बहुत की देख ली दुनिया तेरी।।
दिल ही जब मिलता नहीं तो क्या करेंगे खाल का।।

कंस को अभिमान था की ख़त्म कर देगा निशां।
बाल बाँका कर न पाया देवकी के लाल का।।

मुल्क में बजने लगें चारों तरफ़ शहनाइयाँ।।
छ्न्द में हो जाये गर यूं राब्ता सुर ताल का।।
                         -अनूप अनुपम               

          























              

 








शोर को चीरती आवाज़ थे बाबा साहब

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           शोर को चीरती आवाज़ थे बाबा साहब।।
           हिंद के रत्न थे पुखराज थे बाबा साहब।।
      
      ज़ुल्म की आंधियों पे जीत की माला पहने।।
        न्याय के इक नये आगाज़ थे बाबा साहब।।

        शोषितों के हक़ों की बात ही ओ करते थे।।
            भेद के भाव से नाराज़ थे बाबा साहब।।

               देश के क़ायदे क़ानून को रचने वाले।।
       मुल्क में इल्म का सरताज थे बाबा साहब।।

    दलितों के ख्वाब की तस्वीर जो गढ़ने आये।।
           भारती स्वप्न के परवाज़ थे बाबा साहब।।
 
      शील सौहार्द करुणा वा दया की परिभाषा।।
          मानवी मूल्य के हमराज़ थे बाबा साहब।।
                                -अनूप अनुपम

       
       

















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